शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

बचपन



पानी में खेलते इन बच्चों को देखकर यारो हमें अपना बचपना याद आ गया। यकीनन आप को भी धूमिल यादे ताज़ा हो गयी होगी। अपने छोटे पन में स्कूल से आते वक्त हमे कोई तालाब या नहर मिलता था तो हम और हमारे सखा लोग खूब मस्ती किया करते थे। इनकी अल्हडता और इस अल्हडता में नहाना और साथ में आपस में प्यार भरी उद्दण्डता को देखकर ये ऐहसास हुआ कि इस कायनात में मोहब्बत और अपनापन अभी भी है और आज इन बच्चो को देखकर ऐ और भी पक्का हो गया कि कि पानी कि चाहे कुछ बूंदे ही हो लेकिन उन बूंदो में अपनापन और शालीनता थी। तो भाई हम भी ना रुक पाएं और ना हमारा कैमरा ही रुक पाया और खींच ली कुछ तस्वीरे।

4 टिप्‍पणियां:

संदीप उपाध्याय ने कहा…

सच कहा रजनीश यार बचपन कितना अच्छा होता... न तो करियर की चिंता होती है और न ही कोई टेंशन... यदि टेंशन होती भी है तो इस बात की कि क्या शैतानी की जाए... क्या खेला जाए... काश ये बचपन हमेशा रहता तो कितना अच्छा होता...

Shalini kaushik ने कहा…

man ot hota hi aisa hai jaisa aapka hai.fir aisee sundar sajeev athkheliyon se kya peechhe hatna bahut achchha kiya.naam to amethi ka bahut suna hai.aaj ek amethi vale se mil kar bahut achchha laga naam to amethi ka bahut suna hai.mere blog par aane ke liye aabhar.

अजित त्रिपाठी ने कहा…

गुरु ई फोटुआ में तुम्हार अक्स हमका देखात हय...
नंगा नंगा ताड़ी...

पंकज मिश्रा ने कहा…

बहुत सही रजनीश भाई। ये सब ऐसे दृश्य होते हैं जो हम सबकी आंखों से अक्सर ही गुजर जाते हैं। कभी कभी तो हम इसका हिस्सा भी होते हैं। लेकिन जीवन की आपाधापी में इसको भूल जाते हैं या भुला देते हैं।
आपने यह दृश्य देखा और क्लिक किया और फिर इसे यहां हम सबके लिए लगाया यह बाकई काबिले तारीफ है। कहा जाता है कि एक तस्वीर हजार शब्द कहती है, लेकिन मुझे लगता है यह तस्वीर कई हजार शब्द कह रही है। जरूरत है उस शख्स की जो उन्हें पढ़ सके और समझ सके। उम्मीद करता हूं हल्ला गुल्ला पर आगे भी आप कुछ ऐसा ही देने की कोशिश करते रहेंगे। धन्यवाद और बधाई।