
हथली पर लट्टू
हाथ की हथेलियों पर नाचती ये लकड़ी के लट्टू जो शायद ये बात कह रही है कि यही है जिद़गी का सच। क्या वाकई हमारी जिद़गी इस कठपुतलीनुमा लकड़ी के लट्टू की तरह है कि हम या हमारी जिदगी इसी तरह गोल गोल घूमते रहेगे। क्या हम अपनी हथेलियों में बनी लकीरो का इंतजार करते रहेगे। हथेली की रेखाओ को कब तक हम अपनी कमज़ोरी मानते रहेगे। ये चंद लकीरे ही हमे अपना पथ बतलायगी। कि हम क्या करे..... हम क्या न करे.... वह रे लट्टू तेरे भी क्या जलवे।